क्रिया परिभाषा व भेद

क्रिया: जिन शब्दों से किसी कार्य का होना या करना समझा जाए, उन्हें क्रिया कहते हैं। जैसे खाना-पीना, पढ़ना लिखना, चलना, दौड़ना इत्यादि। हिंदी में क्रिया के रूप लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार बदलते हैं। क्रिया के मूल रूप को धातु कहते हैं। धातु के आगे ‘ना’ जोड़ने से क्रिया का सामान रूप बन जाता है। जैसे ‘पढ़’ धातु में ‘ना’ जोड़ने से ‘पढ़ना’ बन जाता है। इसी प्रकार लिख+ना =लिखना, चल+ना =चलना आदि।

धातु :-

जिस मूल रूप से क्रिया को बनाया जाता है उसे धातु कहते है। यह क्रिया का ही एक रूप होता है। धातु को क्रिया का मूल रूप कहते हैं।

जैसे :- बोल , पढ़ , घूम , लिख , गा , हँस , देख , जा , खा , बोल , रो आदि।

धातु के भेद :-

1. मूल धातू

2. सामान्य धातु

3. व्युत्पन्न धातु

4. यौगिक धातु

1. मूल धातु :- मूल धातु किसी पर आश्रित न होकर स्वतंत्र होती हैं उसे मूल धातु कहते हैं।

जैसे :- खा , पढ़ , लिख , गा , जा , रो आदि।

2. समान्य धातु :- धातु में जो ना प्रत्यय जोडकर उसका सरल रूप बनाया जाता है उसे सामान्य धातु कहते हैं।

जैसे :- सोना , रोना , पढना , बैठना , लिखना , बोलना , घूमना , गाना , हँसना , देखना , जाना , खाना , बोलना , रोना आदि।

3. व्युत्पन्न धातु :- सामान्य धातु में प्रत्यय लगाकर या और किसी कारण से जो परिवर्तन किये जाते हैं उसे व्युत्पन्न धातु कहते हैं।

जैसे :- पढवाना , कटवाना , दिलवाना , करवाना , सुलवाना , लिखवाना , बुलवाना , खिलवाना , धुलवाना आदि।

4. यौगिक धातु :- यौगिक धातु को प्रत्यय जोडकर बनाया जाता है।

जैसे :- पढना से पढ़ा , लिखना से लिखा , खाना से खिलाई जाती आदि।

क्रिया के भेद :-

क्रिया के दो भेद हैं-

(1) अकर्मक क्रिया।

(2) सकर्मक क्रिया।

1. अकर्मक क्रिया :-

जिन क्रियाओं का फल सीधा कर्ता पर ही पड़े वे अकर्मक क्रिया कहलाती हैं।ऐसी अकर्मक क्रियाओं को कर्म की आवश्यकता नहीं होती।अकर्मक क्रियाओं के अन्य उदाहरण हैं-

(1) गौरव रोता है।

(2) साँप रेंगता है।

(3) रेलगाड़ी चलती है।

कुछ अकर्मक क्रियाएँ- लजाना, होना, बढ़ना, सोना, खेलना, अकड़ना, डरना, बैठना, हँसना, उगना, जीना, दौड़ना, रोना, ठहरना, चमकना, डोलना, मरना, घटना, फाँदना, जागना, बरसना, उछलना, कूदना आदि।

2. सकर्मक क्रिया :-

जिन क्रियाओं का फल (कर्ता को छोड़कर) कर्म पर पड़ता है वे सकर्मक क्रिया कहलाती हैं।इन क्रियाओं में कर्म का होना आवश्यक हैं, सकर्मक क्रियाओं के अन्य उदाहरण हैं-

(1) मैं लेख लिखता हूँ।

(2) रमेश मिठाई खाता है।

(3) सविता फल लाती है।

(4) भँवरा फूलों का रस पीता है।

3.द्विकर्मक क्रिया- जिन क्रियाओं के दो कर्म होते हैं, वे द्विकर्मक क्रियाएँ कहलाती हैं।द्विकर्मक क्रियाओं के उदाहरण हैं-

(1) मैंने श्याम को पुस्तक दी।

(2) सीता ने राधा को रुपये दिए।

ऊपर के वाक्यों में ‘देना’ क्रिया के दो कर्म हैं।अतः देना द्विकर्मक क्रिया हैं।

प्रयोग की दृष्टि से क्रिया के भेद :-
प्रयोग की दृष्टि से क्रिया के निम्नलिखित पाँच भेद हैं-

1.सामान्य क्रिया :- 

जहाँ केवल एक क्रिया का प्रयोग होता है वह सामान्य क्रिया कहलाती है।

जैसे-

1. आप आए।

2.वह नहाया आदि।

2.संयुक्त क्रिया :- 

जहाँ दो अथवा अधिक क्रियाओं का साथ-साथ प्रयोग हो वे संयुक्त क्रिया कहलाती हैं।

जैसे-

1.सविता महाभारत पढ़ने लगी।

2.वह खा चुका।

3.नामधातु क्रिया :-

 संज्ञा, सर्वनाम अथवा विशेषण शब्दों से बने क्रियापद नामधातु क्रिया कहलाते हैं।जैसे-हथियाना, शरमाना, अपनाना, लजाना, चिकनाना, झुठलाना आदि।

4.प्रेरणार्थक क्रिया :- 

जिस क्रिया से पता चले कि कर्ता स्वयं कार्य को न करके किसी अन्य को उस कार्य को करने की प्रेरणा देता है वह प्रेरणार्थक क्रिया कहलाती है।ऐसी क्रियाओं के दो कर्ता होते हैं- 

(1) प्रेरक कर्ता- प्रेरणा प्रदान करने वाला।

(2) प्रेरित कर्ता-प्रेरणा लेने वाला।

जैसे-

श्यामा राधा से पत्र लिखवाती है।इसमें वास्तव में पत्र तो राधा लिखती है, किन्तु उसको लिखने की प्रेरणा देती है श्यामा।अतः ‘लिखवाना’ क्रिया प्रेरणार्थक क्रिया है।इस वाक्य में श्यामा प्रेरक कर्ता है और राधा प्रेरित कर्ता।

5.पूर्वकालिक क्रिया :- 

किसी क्रिया से पूर्व यदि कोई दूसरी क्रिया प्रयुक्त हो तो वह पूर्वकालिक क्रिया कहलाती है।जैसे- मैं अभी सोकर उठा हूँ।इसमें ‘उठा हूँ’ क्रिया से पूर्व ‘सोकर’ क्रिया का प्रयोग हुआ है।अतः ‘सोकर’ पूर्वकालिक क्रिया है।

विशेष- पूर्वकालिक क्रिया या तो क्रिया के सामान्य रूप में प्रयुक्त होती है अथवा धातु के अंत में ‘कर’ अथवा ‘करके’ लगा देने से पूर्वकालिक क्रिया बन जाती है।

जैसे-

(1) बच्चा दूध पीते ही सो गया।

(2) लड़कियाँ पुस्तकें पढ़कर जाएँगी।

अपूर्ण क्रिया :-

कई बार वाक्य में क्रिया के होते हुए भी उसका अर्थ स्पष्ट नहीं हो पाता।ऐसी क्रियाएँ अपूर्ण क्रिया कहलाती हैं।जैसे-गाँधीजी थे।तुम हो।ये क्रियाएँ अपूर्ण क्रियाएँ है।अब इन्हीं वाक्यों को फिर से पढ़िए-

गांधीजी राष्ट्रपिता थे।तुम बुद्धिमान हो।

इन वाक्यों में क्रमशः ‘राष्ट्रपिता’ और ‘बुद्धिमान’ शब्दों के प्रयोग से स्पष्टता आ गई।ये सभी शब्द ‘पूरक’ हैं।

अपूर्ण क्रिया के अर्थ को पूरा करने के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है उन्हें पूरक कहते हैं।

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