Hindi Swar-हिंदी स्वर वर्ण, हिंदी वर्णमाला का एक भाग हैं जिनका उच्चारण स्वतंत्र रूप से, बिना रुकावट के और बिना अवरोध के किया जा सकता है, और जो व्यंजनों के उच्चारण में सहायक होते हैं। हिन्दी वर्णमाला में स्वरों की संख्या में कुल 13 हैं – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः।
हिंदी में स्वरों की मात्राएँ (Hindi Swar ki Matra)
हिंदी में स्वरों की मात्राएँ (Matra) हैं, जो विविध चिन्हों द्वारा लिखी जाती हैं और उन्हें उच्चारित करने के लिए उपयोग किए जाते हैं। हिंदी में स्वरों की मात्राएँ निम्नलिखित होती हैं:
- अ (अकार): यह स्वर के नाम का पहला वर्ण है और हिंदी वर्णमाला का प्रमुख स्वर है। इसका उच्चारण जीभ को कुछ ना छूकर बिना जोर लगाए होता है।
- आ (आकार): यह स्वर अकार के बाद आता है और इसका उच्चारण आ के साथ थोड़े से खुले मुँह के साथ होता है।
- इ (इकार): इस स्वर का उच्चारण जीभ के निचले हिस्से को छूकर और मुख को सीधा रखकर होता है।
- ई (ईकार): इस स्वर का उच्चारण जीभ को थोड़ा ऊपर उठाकर होता है।
- उ (उकार): इस स्वर का उच्चारण जीभ को थोड़ा नीचे धकेलकर होता है।
- ऊ (ऊकार): इस स्वर का उच्चारण जीभ को ज्यादा नीचे धकेलकर होता है।
- ऋ (ऋकार): यह स्वर अनुस्वार (ं) के साथ आता है और इसका उच्चारण एक लघु आवाज़ से होता है।
- ए (एकार): इस स्वर का उच्चारण जीभ को थोड़ा फैलाकर होता है।
- ऐ (ऐकार): इस स्वर का उच्चारण जीभ को और ज्यादा फैलाकर होता है।
- ओ (ओकार): इस स्वर का उच्चारण जीभ को थोड़ा छोटा करके होता है।
- औ (औकार): इस स्वर का उच्चारण जीभ को और छोटा करके होता है।
- अं (अनुस्वार): इसे नासिकीय स्वर भी कहते हैं। इसका उच्चारण बिना किसी विभाजन के होता है।
- अः (विसर्ग): यह स्वर अक्षरों के अंत में होता है और इसका उच्चारण विसर्जन के साथ होता है।
इन स्वरों की मात्राएँ उच्चारण के तरीके और ध्वनि में अंतर आधारित होती हैं और ये हिंदी भाषा में शब्दों और वाक्यों को आचार्य स्वर, हलंत स्वर, या अनुस्वार के साथ सही रूप से उच्चारित करने में मदद करती हैं।
Hindi Swar-हिंदी स्वर
Hindi swar letters
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः।
Hindi Swar with Pictures
Hindi swar pictures
हिंदी स्वर की मात्रा (Hindi Swar Ki Matra)
अ | आ | इ | ई | उ | ऊ | ऋ | ए | ऐ | ओ | औ |
कोई मात्रा नहीं | ा | ि | ी | ु | ू | ृ | े | ै | ो | ौ |
स्वर के भेद – Swar Ke Bhed
उच्चारण की अवधि की दृष्टि से Hindi Bhasha Ke Swar तीन प्रकार के होते हैं।
- हृस्व स्वर
- गुरु या दीर्घ स्वर
- प्लुत स्वर
स्वरों का वर्गीकरण निम्नलिखित आधारों पर किया जा सकता है:
- मात्रा / कालमान / उच्चारण के आधार पर स्वर के भेद या प्रकार:
- ह्रस्व स्वर (Hrasva Swar):
- उन स्वरों को ह्रस्व स्वर कहते हैं जिनके उच्चारण में कम-से-कम समय लगता है। इनमें मात्राओं की संख्या 1 होती है और हिन्दी में चार होते हैं: अ, इ, उ, ऋ।
- दीर्घ स्वर (Deergh Swar):
- उन स्वरों को दीर्घ स्वर कहते हैं जिनके उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से दोगुना समय लगता है। इनमें मात्राओं की संख्या 2 होती है और हिन्दी में सात होते हैं: आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।
- प्लुत स्वर (Plut Swar):
- उन स्वरों को प्लुत स्वर कहते हैं जिनके उच्चारण में दीर्घ स्वरों से भी अधिक समय लगता है। इनमें कोई निश्चित संख्या नहीं होती है, और हिन्दी में आगत स्वर के रूप में केवल एक होता है: ऑ ( ॉ )।
- व्युत्पत्ति / स्रोत / बुनावट के आधार पर स्वर के भेद या प्रकार:
- मूल स्वर (Mool Swar):
- ये स्वर उन स्वरों को कहते हैं जिनकी उत्पत्ति की कोई जानकारी नहीं होती है। इनमें मात्राओं की संख्या 4 होती है और हिन्दी में अ, इ, उ, ऋ होते हैं।
- संधि स्वर (Sandhi Swar):
- इनमें मात्राओं की संख्या 7 होती है और हिन्दी में आ, इ, उ, ए, ऐ, ओ, औ होते हैं। संधि स्वर को दो भागों में विभाजित किया जाता है: दीर्घ सजातीय या सवर्ण या समान स्वर और संयुक्त या विजातीय या असवर्ण या असमान स्वर।
- प्रयत्न के आधार पर स्वर के भेद या प्रकार:
- अग्र स्वर (Agr Swar):
- जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का अग्र भाग काम करता है, उन्हें अग्र स्वर कहते हैं। इनमें कुल संख्या 4 होती है और हिन्दी में इ, ई, ए, ऐ होते हैं।
- मध्य स्वर (Madhy Swar):
- जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का मध्य भाग काम करता है, उन्हें मध्य स्वर कहते हैं। इसमें कुल संख्या 1 होती है और हिन्दी में अ होता है।
- पश्च स्वर (Pasch Swar):
- जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का पश्च भाग काम करता है, उन्हें पश्च स्वर कहते हैं। इनमें कुल संख्या 5 होती है और हिन्दी में आ, उ, ऊ, ओ, औ होते हैं।
यह स्वर विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत होते हैं और हिंदी भाषा में अक्षरों के उच्चारण और उनके भेदों को समझने में मदद करते हैं।
स्वरों का उच्चारण स्थान
स्वरों के उच्चारण में वायु फेफड़ों से बाहर निकलती हुई मुख से निर्बाध रूप से निकलती है। सामान्यतः इनके उच्चारण में कंठ एवं तालु का प्रयोग होता है तथा जिह्वा व ओष्ठ कहीं भी स्पर्श नहीं करते ।
स्वर | उच्चारण स्थान |
अ, आ | कंठ |
इ, ई | तालु |
उ, ऊ | ओष्ठ |
ऋ | मूर्धा |
ए, ऐ | कंठ – तालु |
ओ, औ | कंठ – ओष्ठ |
स्वरों का वर्गीकरण
हिंदी वर्णमाला में स्वरों का वर्गीकरण विभिन्न आधारों पर किया जा सकता है। सामान्यतः, स्वरों को निम्नलिखित आधारों पर वर्गीकृत किया जाता है:
- स्थानांतरण (Placement):
- स्वरों को उनके स्थानांतरण (आधार और ऊँचाई) के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। उदाहरण के लिए, आदि स्थान पर आनेवाले स्वरों को अनुदात्त स्वर (अ, इ, उ, ऋ, ए, ओ, अं, अः) के नीचे वर्गीकृत किया जाता है, जबकि ऊँची स्थान पर आनेवाले स्वरों को उदात्त स्वर (आ, ई, ऊ, ऐ, औ) के नीचे वर्गीकृत किया जाता है।
- उच्चारण (Pronunciation):
- स्वरों के उच्चारण के आधार पर भी वर्गीकरण किया जा सकता है। विभिन्न स्वरों के उच्चारण के लिए उदाहरण के रूप में, समान उच्चारण वाले स्वरों को एक ही वर्ग में रखा जाता है।
- ज्ञानांतरण (Knowledge Transfer):
- विद्यार्थियों के शिक्षा के स्तर और उनके ज्ञानांतरण के आधार पर भी स्वरों को वर्गीकृत किया जा सकता है। शुरुआती शिक्षा में आने वाले स्वरों को अलग वर्ग में रखा जा सकता है जिससे विद्यार्थियों को अधिक सुगमता से स्वर सीखने में मदद मिले।
स्वरों के वर्गीकरण में उपरोक्त आधारों का उपयोग किया जाता है और इसका उद्देश्य भाषा सीखने वालों को स्वरों के विभिन्न पहचान में मदद करना होता है। यह भाषा शिक्षा की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जो बच्चों को हिंदी या अन्य भाषाओं को समझने और सीखने में सहायक होता है।
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