आरम्भिक स्तर पर गणितीय क्षमता विकास How To Learn Math | गणित कैसे सीखें
क्या, क्यों और कैसे?
हमारे आसपास की दुनिया में हर वस्तु की मौजूदगी या तो किसी संख्या में है या मात्रा में।
प्राकृतिक से लेकर मानव द्वारा निर्मित वस्तुओं में गणितीय आकार किसी न किसी पैटर्न के रूप में
दिखाई देते हैं। सुबह से लेकर शाम तक हम जो भी करते हैं, उसमें किसी न किसी रूप में गणित मौजूद होता है। क्या आपने कभी सोचा है कि आप अपनी दिनचर्या में कब गणित का उपयोग नहीं
करते हैं?
गणित केवल संख्याओं के साथ गणना करना ही नहीं है। व्यावहारिक जीवन की अधिकांश
कियाओं में गणित की जरूरत पड़ती है। गणित द्वारा हमारे अन्दर कई प्रकार के कौशलों का विकास
दोता है- क्रमबद्धता, नियमितता, तर्क और चिन्तन, निर्णय लेना, विश्लेषण, संश्लेषण और निष्कर्ष
निकालना, तथ्य प्राप्त करना और प्रस्तुत करना। इस प्रकार हमारे अन्दर गणितीय भाषा की समझ
तती है। गणित हमें सोचने का नजरिया देता है जिससे हम अपने परिवेश को समझते हुए दैनिक
जीवन की समस्याओं को हल करने की क्षमता पाते हैं।
गणित शिक्षण के लक्ष्य – लनिंग आउटकम
बच्चों में गणितीय कौशलों के विकास के लिए पांच केन्द्रिक आउटकम विकसित किए गए।
आउटकम गणित के विविध शिक्षण क्षेत्रों से सम्बन्धित हैं ।
आरम्भिक स्तर पर गणित के केन्द्रिक लर्निंग आउटकम
- बच्चे अपने परिवेश को मात्रात्मक रूप में देखने व समझने के लिये संख्याओं का प्रयोग करते हैं।
- बच्चे संख्याओं के बीच संबंधों को समझ कर गणितीय संक्रियाओं को उपयोग करते हैं।
- बच्चे किसी संख्या या संख्या समूह को उसके हिस्सों के रूपों में देख पाते हैं तथा संख्या के हिस्सों के
साथ विविध गणितीय संकियाओं की समझ को व्यक्त करते हैं । - बच्चे स्थान व मात्रा के विभिन्न गणितीय पहलुओं को परिवेश की जानकारी को समझने और दर्शाने, तथा अपनी कल्पनाओं को अभिव्यक्त करने के लिये करते हैं।
- बच्चे समय, मुद्रा और आंकड़ों का महत्व समझते हैं तथा उसका उपयोग अपने जीवन को बेहतर बनाने
के लिए करते हैं।
How To Learn Math | गणित कैसे सीखें
गणित सीखने-सिखाने का क्रम
बच्चों के पास स्कूल आने से पहले गणित से सम्बन्धित अनेक अनुभव पास होते हैं। बच्चों
के तमाम खेल ऐसे हैं जिनमें वे सैंकड़े से लेकर हजार तक का हिसाब रखते हैं। वे अपने खेलों में
चीजों का बराबर बैंटवारा कर लेते हैं। अपनी चीजों का हिसाब रखते हैं। छोटा-बड़ा, कम-ज्यादा,
आगे-पीछे, उपर-नीचे, समूह बनाना, तुलना करना, गणना करना, मुद्रा की पहचान, दूरी का
अनुमान, घटना-बढ़ना जैसी तमाम अवधारणाओं से बच्चे परिचित होते हैं। हम बच्चों को प्रतीक ही।
सिखाते हैं। उनके अनुभवों को प्रतीकों से जोड़ना महत्वपूर्ण है ।
गणित मूर्त और अमूर्त से जुड़ने और जूझने का प्रयास है। अवधारणाएँ अमूर्त होती हैं चाहे ।
विषय कोई भी हो। गणितीय अमूर्तता को मूर्त, ठोस चीजों की मदद से सरल बनाया जा सकता
जब मर्त को अमूर्त से जोड़ा जाता है तो अमूर्त का अर्थ स्पष्ट हो जाता है प्रस्तुतीकरण के तरीके
से भी कई बार गणित अमूर्त प्रतीत होने लगता है।
शुरुआती दिनों में गणित सीखने में ठोंस वस्तुओं की भूमिका अहम होती है। इस उम्र में ते
स्वाभाविक तौर पर तरह-तरह की चीजों से खेलते हैं, उन्हें जमाते, बिगाड़ते और फिर से जमाने हं
इस प्रक्रिया में उनकी सारी इंद्रियाँ सचेत होती हैं, और वे उनके सहारे मात्राओं को टटोलते र
समझते रहते हैं – यहीं से शुरू होती है गणित सीखने की प्रक्रिया
गणित सीखने का एक निश्चित क्रम है । पहले ठोस वस्तुओं के साथ काम, चित्रों के साथ
काम और बाद में संकेतों तथा प्रतीकों के साथ काम करना आवश्यक है।
चरण | कार्य |
Experience अनुभव | ठोस वस्तुओं के साथ अनुभव, विविध प्रकार की वस्तुओं के साथ बार-बार अभ्यास |
Language भाषा | वस्तुओं के साथ क्रियाएँ करते हुए दैनिक जीवन के विविध सन्दर्भों से जुड़ी भाषा का प्रयोग |
Picture चित्र | चित्रों के साथ कार्य, वार्तालाप, अलग- अलग प्रकार के चित्रों के साथ विविध तरीकों से तुलना करना |
Symbol प्रतीक/ संकेत | मात्रात्मक और क्रमागत अवधारणाओं के के साथ प्रतीकों का प्रयोग |
याद रखें
गणित की अवधारणात्मक समझ
रटने से ज्यादा महत्वपूर्ण है समझना
सही उत्तर से ज्यादा जरूरी है सही प्रक्रिया